बौद्ध धर्म क्या है :
बौद्ध धर्म क्या है – भारतीय उपमहादीप से प्रारम्भ होने वाले विश्व के प्रमुख धर्मों में से यह एक है और अब दक्षिण पूर्व एशिया के बड़े भागों में फैल गया है । बौद्ध धर्म विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है
विश्व की लगभग 7 प्रतिशत जनसंख्या ने बौद्ध धर्म को अपनाया है
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे :
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे, जिनका जन्म 563 ई.पू लुम्बिनी (नेपाल) मे सिद्धार्थ गौतम के रूप में हुआ था। इनकी माता का नाम – माया, और पिता का नाम – शुद्धोधन था,
29 वर्ष की आयु मे ग्रह त्याग करके 7 वर्षों तक भटकने के पश्चात 35 वर्ष की आयु में इन्हें बौध गया में पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ।
इन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था।
बौद्ध धर्म के सिद्धान्त क्या है :
गौतम बुद्ध एक व्यावहारिक सुधारक थे, गौतम बुद्ध ने मानव दुख के उन्मूलन के लिए आठ गुणों वाले मार्ग (आष्टांगिक मार्ग) के बारे मे बताया, उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति इस आठ गुणों वाले मार्ग का अनुसरण करता है तो वह स्वंय पुरोहितों के चुगल से मुक्त हो जाएगा और अपने गन्तव्य (मंजिल) तक पहुंच जायेगा।
बुद्ध ने अपने अनुयायियों के लिए जैन गुरुओं के समान आचारण संहित बनाई
इसके मुख्य सिद्धान्त है – हिसां मत करो , दूसरो की सम्पत्ति का लालच मत रखो , नशा मत करो , झूठ मत बोलो , यौन दुराचार और व्याभिचार में शामिल मत हो ।
गौतम बुद्ध ने बताया कि एक व्यक्ति को विलासिता और सादगी दोनों के अति से बचना चाहिए, उन्होंने मध्य मार्ग अपनाने की सलाह दी।
बौद्ध धर्म के आष्टांगिक मार्ग :
सही अवलोकन, सही निर्धारण, सही अमल, सही प्रयास, सही आजीविका , सही भाषण, सही जागरूकता और सही चिन्ता शामिल हैं।
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बौद्ध धर्म की विशेषताएँ :
ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को बौद्ध धर्म नहीं मानता
बौद्ध संघ में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर दर्जे से शामिल किया जाता था । प्राथमिक दौर मे बौद्ध धर्म वर्ण व्यवस्था पर हमला करता था ।
ब्राह्मणवाद की तुलना में बौद्ध धर्म उदार व लौकतांत्रिक था।
इस धर्म ने पालि (प्राकृत) भाषा को अपने प्रचार के रूप में अपनाया।
बौद्ध धर्म क्या है :
बौद्ध धर्म की तीन धार्मिक पुस्तकों के नाम :
विनय, सुत, अभिधम्म, इन्हें संयुक्त रूप से त्रिपिटक कहा जाता है।
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बौद्ध धर्म की जातियां :
ऐसा लिखा गया है कि राजा कनिष्क के शासन काल में चतुर्थ संगीति में बौद्ध धर्म का विभाजन हो गया और दो संप्रदायों का जन्म हुआ हीनयान और महायान
हीनयान बौद्ध वाद :
इसका अर्थ होता है कम या साधन रहित होना,
इस संप्रदाय में बुद्ध के मूल उपदेशों के अनुयाई सम्मिलित है यह एक रूढ़िवादी संप्रदाय है
यह बुद्ध की मूर्ति या चित्र की पूजा में विश्वास नहीं करते
इनका व्यक्तिगत मोक्ष में विश्वास है हीनयान का अंतिम लक्ष्य निवारण है
हीनयान से ही एक संप्रदाय “थेरावाद” बना है
अशोक सम्राट ने हीनयान को ही अपनाया था क्योंकि उस वक्त महायान अस्तित्व में नहीं आया था
वर्तमान में हीनयान का मूल अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है।
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महायान बौद्ध वाद :
इसका अर्थ है अधिक साधन या बड़ा वाहन
यह संप्रदाय अधिक उदार है यह बुद्ध और बोधिसत्व को बुद्ध के दिव्य प्रतीक के रूप में मानता है
इसका अंतिम लक्ष्य आध्यात्मिक उत्थान है
महायान के अनुयाई बुद्ध की मूर्ति या चित्र की पूजा में विश्वास करते हैं
महायान को “बौधिस्त्व का वाहन” भी कहते हैं
इसका प्रमुख ग्रंथ है – कमल सूत्र, महावंश आदि
महायान का एक संप्रदाय “वज्रयान” बाद में विकसित हुआ
वर्तमान 2010 में विश्व में बौद्ध धर्म की 53 प्रतिशत आबादी महायान का पालन करती है।
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