जाति क्या होती है :
जाति क्या होती है – जाति शब्द अंग्रेजी के (caste) शब्द का हिंदी रूपांतरण है, Caste की उत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के Casta शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है – विशुद्ध नस्ल / प्रजाति
सामान्य भाषा में जाति एक ही नस्ल के लोगों का एक समूह होता है जो आपस में एक दूसरे से वैवाहिक संबंधों के द्वारा बंधे होते है।
जाति पूर्णता अनुवांशिकता पर आधारित होती है, जाति की सदस्यता व्यक्ति को जन्म से ही मिल जाती है।
भारतीय समाज में जाति एक प्राचीन संस्था है, जो भारतीय संस्कृति और इतिहास का हिस्सा है। भारत में हजारों जातियां और उपजातियां है।
जाति की परिभाषा :
चॉलर्स कूले के अनुसार ” जब एक वर्ग अनुवांशिक होता है, तो हम उसे जाति कहते है”
मजूमदार एवम् मदान के अनुसार ” जाति एक बंद वर्ग है”
जाति का इतिहास :
जाति क्या होती है :
Caste/ जाति व्यवस्था का अस्तित्व प्राचीन काल से ही रहा है।
जाति व्यवस्था की उत्त्पति के बारे में यह माना जाता है की विभिन्न समय और कालों में जाति व्यवस्था के विभिन्न रूप रहे है।
भारत में जातियों की उत्त्पति से पहले वर्ण व्यवस्था हुआ जन्म हुआ था,
वर्णों का उल्लेख वैदिक काल से किया जा रहा है और इनका वर्गीकरण लगभग 3000 वर्ष से अधिक पुराना है।
वैदिक काल 900 – 500 ईसा पूर्व के बीच की वर्णों को चार भागों में बांटा गया था – ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र।
जातीय वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थान दिया गया, जिनका कार्य – पूजा पाठ, हवन, वेदों का उपदेश देना आदि था।
क्षत्रिय समाज का कार्य राज करना और प्रजा के लिए कार्य करना साथ ही जरूरत पड़ने पर युद्ध करना था।
वैश्य समाज का कार्य लड़ाई में अपने राजा का संपूर्णता से साथ देकर उनकी एवम् प्रजा की जरूरतें पूरी करना और व्यापार करना था
शुद्र समाज का केवल एक ही कार्य था इन तीनो वर्णों के लोगो की सेवा करना।
इस वर्ण व्यवस्था के बाद भी कुछ लोग ऐसे रह जाते थे जो इन चारो में ही शामिल नही होते थे ,
जो बाहर से आए या लाए गए होते है उन्हे कभी कभी पंचम श्रेणी में रखा जाता है।
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जाति की उत्पत्ति कैसे हुई :
वर्ण व्यवस्था के पश्चात बहुत समय बाद वर्णों के अंदर अलग जातियां बनती चली गई,
1 . इसका प्रमुख कारण रहा है जाति से बाहर विवाह।
जब भी कोई महिला या पुरुष किसी दूसरे जाति या वर्ण के व्यक्ति से शादी कर लेता था तो उनकी जाति के लोग उनका बहिष्कार करते,
और उनके बच्चो को एक अलग पहचान (मिश्रित) के साथ देखा जाता जिससे नई नई जातियां बनती चली गई।
2 . कुछ लोगो के अपने कार्य में बदलाव के कारण भी नई जातियों की उत्पत्ति हुई.
जैसे यदि कोई उच्च वर्ण का व्यक्ति निम्न वर्ण के कार्य करने लगता तो उसको अलग जाति के रूप में देखा जाता।
3 . जाति उत्पति का ब्राह्मणवादी सिद्धांत भी है जिसमे कहा जाता है कि जाति ब्राह्मणों की चतुर युक्ति और राजनीति का फल है,
जो उन्होंने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए निर्मित की थी।
ब्राह्मण राज करने वाले सभी राजाओं को क्षत्रिय घोषित कर देते जिससे जातियों की स्थिति में परिवर्तन हुआ।
जाति और वर्ण व्यवस्था में अंतर :
जाति जन्म से निर्धारित होती है लेकिन वर्ण प्राचीन काल से ही कर्म तथा गुणों पर निर्धारित होता है।
जातियों की संख्या हजारों में है लेकिन वर्ण केवल चार है – ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
caste/जाति व्यवस्था धार्मिक, सामाजिक,और आर्थिक विचारों पर आधारित होती हैं लेकिन वर्ण का केवल एक ही आधार होता है धार्मिक.
जाति हर दूसरे क्षेत्र में बदल सकती है, लेकिन वर्ण सम्पूर्ण भारत में समान है।
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जाति की प्रमुख विशेषताएं :
जातियों में व्यक्ति का विवाह अपनी ही जाति समूह में होता है, जिसे आंतरिक विवाह कहते है.
जातियों में खान पान नियम शामिल होता है, जैसे – ब्राह्मण जाति में मांस खाना निषेद है।
अनेक जातियों का अपना परंपरागत व्यवसाय होता है जिससे उनकी सामाजिक पहचान जुड़ी होती है।
जातियों में उपजातियां भी पाई जाती है जो जातियों की एक प्रमुख विशेषता है।
लोगो में अपनी जाति के प्रति लगाव और प्रेम का भाव होता है,
जिसके कारण वह एक समूह के रूप में किसी विषय के प्रति एक समान एकता दिखाते है।
जाति का निर्धारण कैसे होता है :
(जाति क्या होती है ) :
caste/जाति का निर्धारण जन्म से होता है एक बच्चा अपने माता पिता की जाति में जन्म लेता है
जाति का हम चुनाव नहीं कर सकते यह हमें हमारे जन्म के साथ मिलती है जिसे हम बदल या छोड़ नहीं सकते हैं।
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