चाणक्य की राज्य नीति | राज्य और राजा के संबंध में कौटिल्य के विचारचाणक्य की राज्य नीति | राज्य और राजा के संबंध में कौटिल्य के विचार

राज्य और राजा के संबंध में कौटिल्य के विचार :

चाणक्य की राज्य नीति – कौटिल्य जिसे चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है

उसकी गिनती भारत के महान राजनीतिक विचारकों में की जाती है।
चाणक्य के राजनीतिक विचार उसकी प्रसिद्ध रचना अर्थशास्त्र में मिलते हैं

राजनीति शास्त्र के साहित्य में चाणक्य के अर्थशास्त्र का अनूठा स्थान है।

कौटिल्य के अनुसार राजा ही राज्य में सर्वशक्तिमान है

राजनीति की सफलता या असफलता तथा राज्य का भविष्य राजा की शक्ति और नीति पर निर्भर गए

(CHANAKYA )चाणक्य के शब्दों में यदि राजा संपन्न हो तो उसकी समृद्धि से प्रजा भी संपन्न होती है।

चाणक्य के अनुसार राजा के गुण : (चाणक्य की राज्य नीति)

चाणक्य ने राजा के आवश्यक गुणों पर बहुत बल दिया है

वह अपने राजा को केवल सत्ता उपयोग करने वाले व्यक्ति के रूप में नहीं देखता।

वह उसे राजर्षी बनाना चाहता है उसके अनुसार राजा कुलीन धर्म की मर्यादा चाहने वाला ,कृतज्ञ, दृढ़ निश्चय, विचारशील , सत्यवादी , शोर्यवान , वृद्धों के प्रति आदरशील होता है।

चाणक्य के अनुसार एक राजा मैं विवेकपूर्ण दूरदर्शी उत्साही तथा युद्ध में चतुराई जैसे गुण होने चाहिए।

राजा को क्रोध, मद, लोभ, भय, आदि से दूर रहना चाहिए विपत्ति के समय प्रजा का निर्वाह करने और शत्रु की दुर्बलता पहचानने की आवश्यक योग्यता भी राजा के अंदर होनी चाहिए।

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राजा की शिक्षा पर चाणक्य के विचार :

चाणक्य इस तथ्य से परिचित है कि उपरोक्त सभी गुणों से युक्त व्यक्ति सरलता से नहीं मिल सकता,

उसके अनुसार इनमें से कुछ गुण तो स्वभाविक होते हैं और कुछ अभ्यास से प्राप्त किए जा सकते हैं

मनुष्य के स्वभाव और चरित्र पर वंश परंपरा का प्रभाव होता है किंतु अभ्यास से उसमें कुछ परिवर्तन संभव हो जाता है

अभ्यास से प्राप्त गुन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं इसलिए कौटिल्य ने राजा की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया है।
कौटिल्य के अनुसार “जिस प्रकार घुन लगी हुई लकड़ी जल्दी नष्ट हो जाती है उसी प्रकार जिस राजकुल के राजकुमार शिक्षित नहीं होते वह राजकूल बिना किसी युद्ध के स्वय ही नष्ट हो जाता है” ।

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चाणक्य के अनुसार राज्य और राजा के कार्य :

वर्णाश्रम धर्म को बनाए रखना – राजा का एक प्रमुख कर्तव्य वर्णाश्रम धर्म को बनाए रखना और सभी प्राणियों को अपने धर्म से विचलित ना होने देना है

उचित दंड की व्यवस्था करना – राजा का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य दंड की व्यवस्था करना है,

समाज और सामाजिक व्यवहार दंड पर ही निर्भर करते हैं इसलिए दंड की व्यवस्था महत्वपूर्ण है

किंतु इस संबंध में स्वामी को इसका ध्यान रखना चाहिए कि दंड न तो आवश्यक और औचित्य से अधिक और नहीं कम।

आय और व्यय का प्रबंध करना – राजा को आय – वव्य का पूरा हिसाब और प्रबंध रखना चाहिए

उसे यह कार्य समाहर्ता के द्वारा करना चाहिए।
चाणक्य के अनुसार कर धर्म पूर्वक एकत्रित किया जाना चाहिए और वह मात्रा में इतना अधिक हो

कि उससे संकट काल के समय लंबे समय तक जीवन निर्वाह हो सके।

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चाणक्य की राज्य नीति :

राजा और राज्य को लोकहित और कल्याणकारी संबंधित कार्य करते रहना चाहिए।

राजा को अपने द्वारा नियुक्त किए गए संबंधित सेनापति और प्रमुख कर्मचारियों का निरक्षण करते रहना चाहिए।

समय-समय पर राजा को युद्ध करते रहना चाहिए और अपने राज्य का विस्तार करते रहना चाहिए।

न्याय व्यवस्था – सर्व धर्म पालन योजना को कार्यान्वित करने के लिए न्याय व्यवस्था की स्थापना आवश्यक है

इसके दो क्षेत्र होते हैं व्यवहार क्षेत्र और कंटक शोधन क्षेत्र
पहले का संबंध नागरिकों के पारंपरिक विवादों से हैं और दूसरे का राज्य के कर्मचारियों व व्यापारी से है।

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