शिया और सुन्नी में अंतर | मुसलमान कौन है | शिया और सुन्नी का इतिहासशिया और सुन्नी में अंतर | मुसलमान कौन है | शिया और सुन्नी का इतिहास

शिया और सुन्नी मुसलमानो में क्या अंतर है उसको समझने से पहले हम संछेप में मुसलमान कौन है यह भी जान लेते है

मुसलमान कौन है :

आगनाइड्स के अनुसार “मुसलमान वह व्यक्ति होता है जो पैगम्बर के रूप मे मौहम्मद की आर्थिक सेवा मे विश्वास करता है,

जो यह कहता है कि खुदा के सिवा कोई दूसरा खुदा नही है और मौहम्मद खुदा का रसूल है,

या जो खुदा और मौहम्मद मे कोई अन्य आवश्यक विश्वासों के बारे मे श्रद्धा रखता है ”

इस प्रकार प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो यह मानता है कि “इस्लाम ही ईश्वर की एकता है”

और मौहम्मद साहब को पैगम्बर मानता हो वही मुसलमान है।

ऐसे व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि कलमा मे विश्वास रखे किन्तु कटटरपन्थी होना जरूरी नहीं है,

किन्तु केवल स्वयं को मुस्लिम कहना या कहलवाना भी पर्याप्त नही है, उसे सच्चे अर्थो मे मुस्लिम धर्म का पालन करने वाला होना चाहिए

मुस्लिम विधि की शाखाएं :

मुस्लिम विधि के दो प्रमुख सम्प्रदाय है सुन्नी और शिया

1. सुन्नी सम्प्रदाय को पुनः चार भागो मे बाँटा जाता है-

हनाफी , मलिकी, शफी, हनबली

2. शिया सम्प्रदाय को पुन: तीन भागो मे बाटाँ जाता है-

असना अशरिया , इस्माइली , जैदी

असना अशरिया के भी दो भाग है- अकबरी, उसूली

इस्माइली भी पुन: दो भागो मे विभक्त है- खोजा , बोहरा ।

शिया और सुन्नी का इतिहास :

मुसलमानो मे दो मुख्य सम्प्रदाय है शिया और सुन्नी अक्सर दोनो सम्प्रदायों के बीच विवाद होता रहता है

जो कभी कभी हिंसा का रूप भी धारण कर लेता है। मुस्लमानो मे शिया और सुन्नी की शुरुआत कहां से शुरू हुई ? इस पोस्ट मे पढे

612 ई. मे हजरत मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद –

इमामत के उत्तराधिकार के सवाल मे के बारे मे एक विवाद उठ खडा हुआ, जिससे समस्त मुस्लमान लोग दो भागों मे बट गये।

एक भाग के अनुसार (मतानुसार) मौहम्मद साहब का उत्तराधिकारी का चुनाव करने मे उत्तराधिकार के सिद्धान्त को लागू करना चाहिए

दूसरे भाग के मुसलमानों के मतानुसार इस प्रश्न का फैसला चुनाव द्वारा होना चाहिए ।

इस मतभेद के कारण प्रथम भाग शिया तथा दूसरा भाग सुन्नी कहलाने लगा।

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शिया और सुन्नी में अंतर :

सरल शब्दों मे ” जो लोग लोकतात्रिक प्रणाली अपनाना चाहते थे वो सुन्नी कहलाये”

जो लोग उत्तराधिकार का सिद्धान्त लागू करना चाहते थे वो शिया कहलाने लगे।

उसी दौरान मौहम्मद साहब के देहान्त के बाद उनकी पत्नी आइशा ने अली जो मौहम्मद साहब का दामाद था को उत्तराधिकार से वंचित करके अपने पिता अबूबक्र को खलीफा बनवा दिया।

किन्तु शिया सम्प्रदाय ने इसका भारी विरोध किया और अली को मौहम्मद साहब के उत्तराधिकारी के रूप मे खलीफा मान लिया।
जिससे इन दोनो संप्रदाय के बीच मतभेद और बढ़ता चला गया।

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शिया और सुन्नी मे अंतर :

शिया और सुन्नी मे अधिकतर विषयों पर मतभेद है विवाह, तलाक, मेहर, वक्फ, दान, वसीयत आदि सभी विषयों पर दोनों के रिवाज, नियम अलग अलग है।

यहा कुछ प्रमुख विषयों के प्रमुख मतभेद निम्न है। –

1 . शिया विधि के अनुसार मुता विवाह कानूनी है लेकिन सुन्नी विधि के अनुसार गैर कानूनी है।

2 .  शिया विधि मे विवाह के लिए केवल पिता या पितामह की स्वीकृति कानूनी रूप से मान्य है

लेकिन सुन्नी विधि मे पिता या पितामह के अलावा लड़की के भाई या पिता पक्ष या माता पक्ष सम्बन्धी भी कानूनी रूप से स्वीकृति दे सकते है।

3 . शिया विधि मे विवाह के समय गवाहो की उपस्थिति आवश्यक नही है

लेकिन सुन्नी विधि मे विवाह के समय दो गवाहों की उपस्थिति आवश्यक है।

4 . शिया विधि मे तलाक के समय दो गवाहो की आवश्यकता होती है
जबकि सुन्नी विधि मे तलाक के समय किसी गवाह की आवश्यकता नही होती।

5 . शिया विधि मे मेहर की न्यूनतम सीमा अनिश्चित होती है लेकिन सुन्नी विधि मे 10 दिरम निश्चित होती है।

6 . शिया विधि मे मेहर की अधिकतम सीमा 500 दिरम होती है लेकिन सुन्नी विधि मे कोई अधिकतम सीमा निश्चित नही है।

7 . शिया विधि में तलाक मौखिक रूप से अरबी भाषा मे होना चाहिए, –

जबकि सुन्नी विधि मे तलाक मौखिक या लिखित कैसा भी हो सकता है।

8 . शिया वक्फ संम्पति हिताधिकारियो मे निहित मानी जाती है, जबकि सुन्नी वक्फ सम्पत्ति ईश्वर को समर्पित होती है।

9 . शिया विधि मे नि: सन्तान विधवा स्त्री को पति की अचल सम्पत्ति मे हिस्सा पाने का हक नही होता।
जबकि सुन्नी विधि मे निःसन्तान विधवा स्त्री को पति की अचल सम्पत्ति मे हिस्सा पाने का हक होता है। 

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