समानता क्या है :
समानता क्या है हम इस Article में ‘समानता ( Equality) ‘ के बारे में जानेंगे.
हमने समानता के बारे में इस पोस्ट में विस्तार से बताया है.
आपसे अनुरोध है पूरी पोस्ट पढ़िए ताकि आप समानता और उसके पहलुओं को ठीक तरह से समझ सके।.
समानता किसे कहते है :
समानता इस सिद्धांत पर आधारित है – “ईश्वर ने रचना के रूप में सभी मनुष्यों को समान महत्व का बताया है”,
“मनुष्य को भी एक दूसरे के साथ रंग ,लिंग ,वंश, धर्म, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए।”
समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्व और सम्मान पाने के योग्य है।
समानता की शुरुआत :
समानता क्या है
18 वीं शताब्दी के अंत के दशकों में फ्रांसीसी क्रांति हुई. जो भूमि सामंतों , अभिजन वर्ग, और राजशाही के खिलाफ एक विद्रोह था.
इस विद्रोह का नारा था स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा,
उसके बाद 19वीं सदी के बाद इस तरह की समानता की बातें एशिया , अफ्रीका के देशों में फैल गई.
आजादी के संघर्ष में इन देश के लोगों ने समानता की आवाज उठाई –
‘अक्सर आवाज वहीं उठाते हैं जो यह महसूस करते हैं कि समाज में उन्हें किनारे रखा जाता है
उचित महत्व और सम्मान नहीं मिलता है’। जैसे – महिलाएं दलित कोई उपेक्षित समूह अल्पसंख्यक आदि।
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समानता का महत्व क्या है :
सामाजिक संस्था और अन्य पद पर बैठे लोग खुद को या लोगों के एक समूह को विशेष अधिकारी समझते हैं.
जिससे असमानता का जन्म होता है।
सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तीनों तरह से सभी लोगों के साथ समान व्यवहार हो इसके लिए समानता का होना महत्वपूर्ण है.
जैसे : समानता की वजह से ही सभी के लिए एक वोट का अधिकार है.
सार्वजनिक वस्तुओं का लोग बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकते हैं-
सभी लोगों को अपनी पसंद का काम करने की आजादी मिली हुई है.
समानता का अर्थ क्या है :
किसी भी समाज में सभी लोगों के साथ सभी स्थितियों में एक जैसा व्यवहार एक जैसा महत्व प्रदान करना बहुत मुश्किल है.
समाज के सहज कार्य – व्यापार के लिए कार्य का विभाजन होना जरूरी है.
और अलग-अलग कामों से लोगों को अलग-अलग लाभ और महत्व मिलता है।.
कई बार कुछ लोगों को मिला विशेष महत्व केवल स्वीकार करने योग्य ही नहीं बल्कि जरूरी भी हो सकता है.
उदाहरण : सेना के जनरल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को मिला ‘विशेष सरकारी दर्जा और सम्मान’
हमें तब तक समानता की धारणा के खिलाफ नहीं लगता जब तक कि उसका गलत इस्तेमाल ना करें।.
अगर आप सभी लोगों को सभी जगह सभी तरीके से सम्मान महत्व सम्मान लाभ देंगे तो समाज का विकास होना बंद हो जाएगा.
लोग अपने अंदर छुपी प्रतिभाओं को बाहर नहीं निकाल पाएंगे।
सभी व्यक्तियों के अंदर अलग-अलग तरह की सोच इच्छा और महत्वकांक्षा होती है जो उसे आगे बढाने में मदद करती है।
जैसे – हर कोई व्यक्ति अच्छा संगीतकार नहीं हो सकता, सभी व्यक्ति वैज्ञानिक नहीं हो सकते.
जैसे सब के काम उनकी इच्छा अनुसार होते हैं उसी तरह के लाभ उनको मिलते हैं और उसी तरह उनको महत्व दिया जाता है।
समानता का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि सबको सभी परिस्थितियों में एक जैसा देखा जाए.
सभी अंतर उन्मूलन (समाप्त) हो जाए यह न तो संभव है नहीं समाज के हित में है.
समानता का मतलब तो यह है कि –
” हमसे जो व्यवहार किया जाता है और हमें जो अवसर प्राप्त होते हैं – वे जन्म स्थान, लिंग, रंग ,धर्म ,जाति के आधार पर निर्धारित नहीं होने चाहिए”।
असमानता के प्रकार :
समानता की अवधारणा में यह निहित है की सभी मनुष्य अपनी दक्षता (Skill) और –
प्रतिभा को विकसित करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों को आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकारों और अवसरों के हकदार है।
इसका अर्थ यह है कि ‘सब अपनी पसंद का कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं,
इनमे से कुछ लोग अपने क्षेत्र में बेहतर भी कर सकते हैं.
वह ज्यादा धन तरक्की हासिल कर सकते हैं’, तो इसके आधार पर आप समाज को असमान नहीं कह सकते हैं
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताएं :
प्राकृतिक असमानताएं : लोगो में विभिन्न क्षमताओं प्रतिभाओं और उनके अलग-अलग चयन के कारण होती है.
(Natural) प्राकृतिक असमानताएं लोगों की जन्म गत विशेषताएं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती है।.
जैसे – किसी का शरीर मजबूत होना, किसी का संगीत में अच्छा होना , किसी का चित्रकारी में अच्छा होना इत्यादि।
सामाजिक असमानताएं : वे होती है जो समाज में अवसरों की असमानताएं होने या किसी समूह का किसी दूसरे समूह द्वारा शोषण किए जाने से पैदा होती है।.
जैसे – कुछ समाज बौद्धिक काम करने वालों को शारीरिक कार्य करने वालों से अधिक महत्व देते हैं.-
और उन्हें अलग तरीके से लाभ दिया जाता है. महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमजोर समझा जाता है इत्यादि।
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समानता के प्रकार :
समाज में व्याप्त अलग-अलग तरह की असमानताओं के बीच विभिन्न (Various) विचारकों ने समानता के तीन आयामों को रेखांकित किया है.
राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक यह तीनों समानता एक दूसरे को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती है।
राजनीतिक समानता :
जो भी हमारे अधिकार समानता के लिए हमें किसी देश के संविधान से प्राप्त होते हैं वह राजनीतिक समानता के तहत हैं.
राजनीतिक समानता वह है जिसमें वह सब अधिकार शामिल है जिन से राजनीतिक तौर पर असमानता का उन्मूलन होता है।
जैसे – लोकतंत्र में सभी के पास समान वोट का अधिकार, घूमने की स्वतंत्रता , संगठन बनाने की स्वतंत्रता , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता, कानून के समक्ष समानता की स्वतंत्रता आदि।.
सरल शब्दों में – राजनीतिक समानता की जरूरत उन बाधाओं को दूर करने में है जिन्हें दूर करने से लोगों का सरकार में अपनी बात को रखना और उपलब्ध संसाधनों तक पहुंचना संभव होगा।.
सामाजिक समानता :
इसे तात्पर्य है कि विभिन्न (Various) समूह और समुदायों के लोगों के पास संसाधनों और अवसरों को पाने का बराबर और उचित मौका हो।
सामाजिक समानता में समाज के सभी सदस्यों के जीवन यापन के लिए अन्य चीजों के अतिरिक्त पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं, अच्छी शिक्षा पाने का अवसर , उचित पोषक आहार , न्यूनतम वेतन जैसे कुछ बेसिक चीजों की गारंटी भी जरूरी मानी गई है.
इन सुविधाओं के अभाव में समाज के सभी सदस्यों के लिए समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करना संभव नहीं होगा.
इन सुविधाओं को प्रदान कर बहुत हद तक अवसर की असमानता को दूर किया जा सकता है।
लेकिन भारत में केवल इतना ही काफी नहीं है –
कई बार समस्या सुविधाओं कि वजह से नहीं रीति-रिवाजों, परम्पराओं, रूढ़िवादी दृष्टिकोण की वजह से सामने आती है.
इनसे बचाने को भी राज्य को हस्तछेप करना पड़ता है। जैसे – बाल विवाह, विधवा विवाह, तीन तलाक, आदि।
आर्थिक समानता :
आर्थिक समानता उस समाज में विद्यमान होती है –
जिसमें लोगों समूह वर्गो के बीच अच्छी खासी मात्रा में धन दौलत आमदनी में भिन्नता नहीं हो.
यह सही है कि समाज में धन दौलत की आमदनी की पूरी समानता संभवत कभी विधमान नहीं रही है और नहीं भविष्य में इसकी संभावना है.
लेकिन लोकतंत्र लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास करता है.
जिससे यह उम्मीद की जा सकती है कि कम से कम उन व्यक्तियों को अपनी हालत सुधारने का मौका मिलता है जिनमे प्रतिभा और संकल्प है।
आर्थिक असमानता का अर्थ :
अगर किसी समाज में ऐसा हो कि – लोगों का एक समूह जो कई पीढ़ियों से धनवान हो और धन, सत्ता, सुविधाओं का उपयोग करता आ रहा हो और बाकी लोगों की हालत में कोई सुधार न आ रहा हो तो समाज वर्गों में बट जाता है।
कालांतर में यानी दीर्घकाल में जाकर इन वर्गों में मतभेद बढ़ जाते हैं और यह आक्रोश व हिंसा को बढ़ावा दे सकता है।
समाज का वह वर्ग जो धन से वंचित रहा है मांग कर सकता है कि समाज में धन, दौलत, संपदा का दोबारा से वितरण किया जाए.
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समानता का निष्कर्ष :
बेसिक जरूरतें पूरी करने लायक सभी को संसाधन देना. शिक्षा का स्तर सार्वजनिक संस्थानों में अच्छा बनाए रखना.
सार्वजनिक हित की चीजों को बढ़ावा देना. सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था उपलब्ध कराना, कानून बनाकर लोगों के विशेष दर्जा खत्म करना।
लोगों की सोच बदलने के लिए शिक्षा नीति पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव करना.
समाज में जागरूक अभियान चलाना जैसे लोगों की सोच बदले वह सामाजिक भेदभाव को खत्म कर सकें।
लोगों को रोजगार से अच्छा वेतन प्राप्त ऐसा सुनिश्चित करना.
वेतन का स्तर कम से कम इतना रखना कि व्यक्ति अपना बेसिक जीवन ठीक तरह से जी सके।
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विशेष बर्ताव के द्वारा समानता प्रदान करना :
जैसे – स्कूल आने के लिए किसी दिव्यांग को सरकार रिक्शा दे सकती है.
परीक्षा में किसी दिव्यांग को कुछ अतिरिक्त समय दे दिया जाता है, महिलाओं को अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है.
हम उन बाधाओं को दूर करने की बात कर रहे हैं जिनके दूर करने से कुछ लोग अपनी समानता को ठीक तरह से हासिल कर पाएंगे।
समानता के लिए सकारात्मक कार्यवाही :
समानता क्या है
इससे मतलब उन सुविधा या कानूनों से है जिनके द्वारा उन लोगों की सहायता की जाती है.
जो किसी ना किसी तरह सामान्य तौर पर अपनी समानता का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
जैसे – कोई अपनी पीढ़ियों में पहली बार पढ़ाई कर रहा है तो वह उन लोगों को चुनौती दे पाए और प्रतिस्पर्धा कर पाए जो पीढ़ियों से शिक्षित है तो यह थोड़ा मुश्किल है।
इसलिए ऐसे लोगों के लिए कुछ सकारात्मक कार्रवाई की जाती है ताकि उनको भी अवसर मिल सके और वह लोग उनका लाभ उठा सके.
जैसे – गरीब बच्चों को छात्रवृत्ति देना , Hostel की फीस माफ कर देना , (आरक्षण का प्रावधान भी इसी कार्यवाही के तहत दिया गया है) आदि।
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार :
- अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता का अधिकार।
- Article = अनुच्छेद 15 धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं होगा।
- अनुच्छेद 16 अवसर की समानता।
- Article = अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत।
- अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत (शिक्षा और सेना को छोड़कर)।
संविधान में समानता का अधिकार :
कुछ नीति निर्देशक तत्व भी संविधान में दिए गए हैं.
जो सामाजिक, आर्थिक, समानता को बढ़ावा देने के लिए राज्य को ऐसी नीतियां बनाने को निर्देशित करते है।
Article अनुच्छेद 38 सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय द्वारा सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करना –
और आए प्रतिष्ठा सुविधाओं और अवसरों की असमानताओं को समाप्त करना।
अनुच्छेद 39 सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार, –
सामूहिक हित के लिए समुदाय के भौतिक संसाधनों का सम वितरण, पुरुषों और स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन।
समानता क्या है : नीति निर्देशक तत्व –
- अनुच्छेद 39 (क) समान न्याय व गरीबों को निशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराना।
- Article अनुच्छेद 41 काम पाने के, शिक्षा पाने के, बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निशक्तता की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को संरक्षित करना।
- अनुच्छेद 42 काम की न्याय संगत और मनोवांछित दशाओं का तथा प्रसूति (pregnancy) सहायता का उपबंध (provide) करना। अनुच्छेद 43 सभी काम करने वालों के लिए निर्वाह मजदूरी तथा श्रेष्ठ जीवन स्तर, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर।
- Article अनुच्छेद 43 क उद्योगों के प्रबंध में कर्मचारियों के भाग लेने के लिए कदम उठाना।
- अनुच्छेद 47 पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करना तथा लोक स्वास्थ्य को सुधार करना।
नीति निर्देशक तत्वों के के बारे में आपको एक बात जान लेनी चाहिए कि इन को लागू करने के लिए राज्य को मजबूर नहीं किया जा सकता.
इनका मकसद यह है कि राज्य कानून बनाते वक्त इन सभी अनुच्छेदों में लिखी गई बातों का ध्यान रखें।
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भारतीय राजनीति की दो आर्थिक विचारधाराएं – https://youtu.be/jAoXCdQ4jP0