राज्यसभा और लोकसभा में अंतर :
राज्यसभा और लोकसभा में अंतर – संविधान के अनुसार भारत की 2 सदने है राज्यसभा और लोकसभा।
संविधान के भाग 5 के अंतर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में संसद के गठन, संरचना, अवधि, अधिकारियों प्रक्रिया, विशेष अधिकार व शक्ति आदि के बारे में वर्णन किया गया है
राज्यसभा को उच्च सदन कहा जाता है जबकि लोकसभा निचला सदन कहलाता है।
Rajya Sabha में राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं, जबकि लोकसभा संपूर्ण रूप में भारत के सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है।
राज्यसभा और लोकसभा की संरचना में अंतर :
राज्यसभा में कुल सीटों की संख्या :
Rajya Sabha की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित है, इनमें 238 सदस्य राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं इनमें 229 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं 4 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
लोकसभा में कुल सीटों की संख्या :
लोकसभा की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गई है इनमें से 530 राज्यों के प्रतिनिधि और 20 संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं
एंग्लो इंडियन समुदाय के 2 सदस्यों को राष्ट्रपति नामित करते है।
वर्तमान में लोकसभा में 545 सदस्य हैं इनमें से 530 सदस्य राज्यों से 13 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों से और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित एंग्लो इंडियन समुदाय से हैं।
राज्यसभा और लोकसभा के कार्यकाल में अंतर :
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल :
Rajya Sabha निरंतर चलने वाली संस्था है यह एक स्थाई संस्था है और इसका विघटन नहीं होता,
किंतु इसके एक तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त होते हैं ये सीटे चुनाव के द्वारा फिर भरी जाती है और
राष्ट्रपति द्वारा हर तीसरे वर्ष के शुरुआत में मनोचयन होता है।
सेवानिवृत्त होने वाले सदस्य कितनी बार भी चुनाव लड़ सकते हैं और नामित हो सकते हैं।
संविधान में राज्य सभा के सदस्यों के लिए कोई पद अवधि निर्धारित नहीं करके इसे संसद पर छोड़ दिया,
संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के आधार पर राज्य सभा की पदावली कार्यकाल 6 साल होना चाहिए को निर्धारित किया।
लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल :
लोकसभा जारी रहने वाली संस्था नहीं है सामान्य तौर पर इसकी अवधि आम चुनाव के बाद हुई पहली बैठक से 5 वर्ष के लिए होती है
इसके अलावा लोकसभा की अवधि आपात की स्थिति में एक बार में 1 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है ।
लोकसभा के सभी सदस्यों का चुनाव एक साथ होता है और पूरी लोकसभा एक साथ ही विघटित हो जाती है।
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राज्यसभा और लोकसभा के लिए योग्यताएं :
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए योग्यताएं :
Rajya Sabha का सदस्य होने के लिए व्यक्ति का भारत का नागरिक होना जरूरी है।
उस व्यक्ति की आयु कम से कम 30 वर्ष होनी चाहिए। उसके पास ऐसी अन्य योग्यताएं होनी चाहिए जो संसद द्वारा मांगी गई हो ।
वह किसी लाभकारी पद पर आसीन ना हो।
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए योग्यताएं :
वह भारत का नागरिक होना चाहिए ।
उसकी आयु 25 वर्ष होनी चाहिए ।
वह किसी लाभकारी पद पर आसीन ना हो ।
उसके पास ऐसी अन्य योग्यताएं होनी चाहिए जो संसद द्वारा मांगी गई हो।
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राज्यसभा और लोकसभा के पीठासीन अधिकारी :
प्रत्येक सदन के अपने पीठासीन अधिकारी होते हैं उसी तरह राज्यसभा और लोकसभा में भी अपने अलग-अलग पीठासीन अधिकारी है।
राज्यसभा का पीठासीन अधिकारी :
राज्यसभा का पीठासीन अधिकारी सभापति होता है जो देश का उपराष्ट्रपति है।
इसमें एक उपसभापति भी होता है जिसे राज्यसभा के सांसद स्वयं चुनते हैं यह सभापति की अनुपस्थिति में या पद खाली होने पर सभापति के कार्य करता है।
लोकसभा का पीठासीन अधिकारी :
लोकसभा का पीठासीन अधिकारी लोकसभा अध्यक्ष कहलाता है, लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सभी सांसद मिलकर करते हैं।
इसके अलावा लोकसभा में एक उपाध्यक्ष भी होता है जो लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्य करता है।
राज्यसभा और लोकसभा की शक्तियों में अंतर :
राज्यसभा की शक्तियां :
साधारण विधेयक – पर राज्यसभा को यह शक्ति प्राप्त है कि वह इसमें संशोधन कर लोकसभा को अपने विचार के लिए भेज सकता है
राज्यसभा इसको 6 माह तक रोक सकता है।
यदि ऐसा होता है तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाकर उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से इस विधेयक को पारित कराते हैं।
धन विधेयक – धन विधेयक के विषय में राज्यसभा की शक्तियां बहुत सीमित है यह इस विधेयक में संशोधन नहीं कर सकता
परंतु इसे कम से कम 14 दिन तक अपने पास रख सकता है।
यह संसद को राज्य सूची (अनुच्छेद 249 के तहत) में से विधि बनाने हेतु अधिकृत कर सकती है।
यह संसद को केंद्र और राज्य दोनों के लिए नई अखिल भारतीय सेवा के सर्जन हेतु अधिकृत कर सकती हैं। (अनुच्छेद 312)
लोकसभा की शक्तियां :
साधारण विधेयक – साधारण विधेयक किसी भी सदन में पेश हो सकता है
यदि राज्यसभा इस विधेयक में संशोधन कर दे तो लोकसभा इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
धन विधेयक – धन विधेयक लोकसभा में पारित हो जाए तो राज्यसभा इसमें संशोधन नहीं कर सकती, इसे केवल 14 दिन रोक सकती है
यदि राज्यसभा 14 दिन के भीतर इस पर अपनी स्वीकृति नहीं देती है तो यह राज्यसभा द्वारा पारित समझा जाता है।
कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसे बताने की शक्ति लोकसभा अध्यक्ष के पास है।
दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
राज्यसभा सिर्फ बजट पर चर्चा कर सकती है उसके अनुदानों की मांग पर मतदान नहीं कर सकती।
राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त करने का संकल्प लोकसभा द्वारा ही पारित कराया जा सकता है।
लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित कर मंत्री परिषद को हटा सकती है राज्यसभा ऐसा नहीं कर सकती।
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