शिव भक्ति से जुड़ी कथा – शिवभक्ति से जुड़ी देवराज ब्राह्मण की कथा (कहानी)
( शिव पुराण ) बहुत पहले की बात है- किरातों के नगर में देवराज नाम का एक ब्राह्मण रहता था ।
वह ज्ञान में दुर्बल, गरीब रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था।
देवराज स्नान, संध्या नही करता था और उसमे वैश्य वृति बढ़ती ही जा रही थी
वह भक्तों को ठगता था। उसने अनेक मनुष्यों को मारकर उन सबका धन हड़प लिया था।
पापी ने थोड़ा-सा भी धन धर्म के काम में नहीं लगाया था। वह वैश्यागामी तथा आचार- भ्रष्ट था।
एक दिन वह घूमता हुआ दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूसी – प्रयाग) जा पहुंचा।
वहाँ उसने एक शिवालय देखा, जहा बहुत से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे।
देवराज वही ठहर गया। वहां रात मे उसे ज्वर आ गया और उसे बड़ी पीड़ा होने लगी।
शिव भक्ति से जुड़ी कथा
वही पर एक बाह्मण देवता शिवजी की कथा सुना रहे थे।
ज्वार मे पड़ा देवराज अपने पापो को याद करता बाह्मण के मुख से शिवकथा को निरंतर सुनता रहता था
एक मास बाद देवराज ज्वर (बुखार) की पीड़ा को सहता हुआ चला बसा।
यमराज के दूत उसे बाधकर यमपुरी ले गए। तभी वहां शिवलोक से भगवान शिव के पार्षदगण (सेवक) आ गए।
वे कर्पूर के समान उज्ज्वल थे। उनके हाथ में त्रिशुल, सपूर्ण शरीर पर भस्म और गले मे रूद्राक्ष की माला थी जो उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी.
उन्होंने यमराज के दूतो को वहां से वापस लौटा दिया और देवराज को अपने साथ कैलाश पर्वत पर ले गए और ब्राह्मण देवराज को करुणा अवतार भगवान शिव के हाथों सौंप दिया ।
इतना केवल उसके शिव कथा को सुनने से हुआ था,
उसके सारे पाप नष्ट हो गए और शिव पार्षदों ने उसको यमपुरी से निकाल कर कैलाश पर्वत पर पहुंचा दिया
भगवान शिव ने साक्षात उसे दर्शन दिए और फिर उसे अपने धाम में स्थान दिया।
इस कहानी से हमें यह सार मिलता है कि भगवान शिव का हृदय सच में बहुत बड़ा है वो अपने भक्तों से जल्दी प्रसन्न हो जाते है
यदि सच्चे ह्रदय से भगवान की कथा सुनी जाए तो शिवजी उन मनुष्यों पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हैं शिवपुरी में स्थान देते हैं ।
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