आरती क्या है – भगवान और देवताओं की पूजा के अंत आरती करने का विधान है
लेकिन क्या आपको पता है ! आरती क्या है ?
आरती क्यों की जाती है ? और आरती कैसे करनी चाहिए ?
अगर आप एक श्रद्धावान व्यक्ति है और सच्चे मन से भगवान की पूजा करते है तो आपको इन सभी प्रश्नों का उत्तर पता होना चाहिए।
क्योंकि जब आपको आरती से जुड़ी हुई जानकारी होगी तो आप आरती को कभी नजरंदाज नहीं करेंगे।
वैसे तो भगवान बहुत दयालु होते है वह हमारे द्वारा की गई एक छोटी सी पूजा विधि से भी प्रसन्न हो जाते है
क्योंकि उनके लिए मुख्य तौर पर भावना का महत्व अधिक होता है।
लेकिन फिर भी हमें पूजा विधि को अच्छे से करना चाहिए जिससे हमें उसका अधिक से अधिक फल मिल सकें।
आरती क्या है :
आरती को ‘आरतिका’ अथवा ‘आरर्तिका’ और ‘नीराजन’ भी कहते है।
Aarti आरती अपने देवता को प्रसन्न करने का एक संगीतमय उपाय है
यदि आप भजन न करके केवल भगवान की आरती करें तो ज्यादा शुभदायक होती है।
आरती कैसे करनी चाहिए :
आरती करने से पहले मूलमन्त्र द्वारा अपने भगवान को पुष्प अर्पित करने चाहिए।
उसके बाद पूरी पूजा होने पर अंत मे ढोल, नगढे, शंख, घंटिया आदि महावधो के साथ जय-जयकार के साथ शुभ व शुद्ध पात्र मे घृत (घी) या कपूरे से विषम संख्या की अनेक बतियाँ जलाकर आरती करनी चाहिए।
आरती पाँच बत्तियों से की जाती है इसे ‘पञ्चप्रदीप’ कहते है।
एक सात या उससे अधिक बत्तियो से भी आरती की जाती है।
आरती करते समय शांत वातवरण होना चाहिए और अंत मे भगवान को कुंकुम, चंदन का तिलक लगाना चाहिए और प्रसाद वितरित करना चाहिए.
आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणो मे उसे चार बार घुमाना चाहिए,
दो बार नाभि मे, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंगो पर घुमाया जाना चाहिए।
आरती क्यो की जाती है :
पूजा मे जो त्रुटि (कमी) या गलतियाँ हो जाती हैं आरती से उसकी पूर्ति हो जाती है।
स्कन्दपुराण में कहा गया है – “मन्त्रहीन क्रियाहीनं यत्र पूजन हरे: सर्वे सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे” ॥
अर्थात्-पूजन मन्त्रहीन और क्रिया हीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती है।
आरती करने से ही पूजा को पूर्ण माना जाता है।
हमारी आरती के करने से पूजा मे की गई गलतियाँ को भगवान क्षमा करते है और अपनी कृपादृष्टि बनाते है।
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