श्री हरी ने दिए एक बालक को दर्शन :
बालक ध्रुव की कहानी : बालक ध्रुव 5 वर्ष के थे जब उन्होंने श्री हरि की तपस्या की थी,
आगे जो भी कहानी का वर्णन है वो भागवत पुराण के अनुसार बताया गया है।
महाराजा उत्तानपद ( मनु के पुत्र ) की दो पत्नियां थी,
सुनीति और सुरुचि सुरुचि राजा को अधिक प्रिय थी बालक ध्रुव की माता सुनीति उन्हें वैसी प्रिय नहीं थी।
1 दिन राजा उत्तानपाद सुरुचि के पुत्र उत्तम को गोद में बैठा कर प्यार कर रहे थे
उसी समय बालक ध्रुव ने भी गोद में बैठना चाहा लेकिन राजा ने उसका स्वागत नहीं किया।
उसी समय घमंड से भरी हुई सुरुचि ने बालक ध्रुव को कहा कि बच्चे तू राजसिंहासन का अधिकारी नहीं है
तू राजा का बेटा है , तो क्या हुआ तुझे मैंने तो अपनी कोख से जन्म नहीं दिया
यदि तुझे राजसिंहासन की इच्छा है तो तपस्या कर और श्री नारायण की कृपा से मेरी गर्भ में आकर जन्म ले।
बालक ध्रुव की कहानी :
तब अपनी सौतेली मां से यह कटु वचन सुनकर बालक ध्रुव रोता हुआ अपनी माता सुनीति के पास पहुंचा
जब सुनीति को सारी बात पता चली तो उसे बहुत दुख हुआ उसने पुत्र ध्रुव से कहा तू किसी के लिए अमंगल की कामना मत कर
जो दूसरों को दुख देता है उसे स्वयं ही दुख भोगना पड़ता है।
सुरुचि ने जो कहा ठीक ही कहा है महाराज को मुझे पत्नी तो क्या दासी स्वीकार करने में भी लज्जा आती है
बेटा यदि तू राजकुमार उत्तम की तरह राज सिंहासन चाहता है तो द्वेष भाव छोड़कर श्री हरी की आराधना में लग जा।
सभी का चिंतन छोड़ बस श्री हरि के चरण कमलों की आराधना कर,
मुझे भी उनके सिवा और कोई नजर नहीं आता है जो तेरे दुख को दूर कर सके
तेरे पिता और ब्रह्मा जी और जितने भी देवता है सभी को श्री हरि नहीं उनके कर्म अनुसार पद दिया है।
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नारद जी के दर्शन :
माता की बात सुनकर बालक ध्रुव पिता के नगर से निकल पड़े
बालक ध्रुव के मन की बात जानकर “नारद जी वहां आए” और बालक ध्रुव को समझाने लगे
कि ध्रुव अभी तू बच्चा है तेरी उम्र खेलकूद की है उसी में मस्त रहता है,
हम नहीं समझते कि इस उम्र में किसी बात से तेरा सम्मान या अपमान हो सकता है
नारद जी ने कहा कि माता के उपदेश से तू जिस भगवान का योग साधना के द्वारा प्रसन्न करने चला है उन्हें प्रसन्न करना बहुत ही कठिन है
नारद जी ने ध्रुव को बहुत समझाया लेकिन बालक ध्रुव ने उनकी बात नहीं मानी
उसका हृदय सुरुचि के कटु वचनों से छलनी हो चुका था
बालक ध्रुव के मन की स्थिति को समझकर नारद जी ने कहा कि बेटा तेरी माता ने तो सही ही कहा है
जो कुछ भी तू चाहता है वह तो केवल तुझे श्रीहरि ही दे सकते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र :
नारद जी ने ध्रुव को यमुना किनारे जाकर योग साधना से भगवान को प्रसन्न कैसे करें यह तरीका बताया और पूजा की अन्य तरीके बताएं।
उन्होंने भगवान के सुंदर रूप का वर्णन किया जिसमें ध्रुव को ध्यान लगाने का संदेश दिया
और श्री हरी की आराधना करने के लिए एक मंत्र भी दिया “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
ध्रुव के यमुना किनारे जाने के बाद नारद जी महाराज उत्तानपाद के दरबार में गए जहां राजा बहुत ही दुखी बैठे थे
उन्हे अपने बालक पर दया और खुद पर क्रोध आ रहा था कि उन्होंने कैसे अपने बालक को दुःख पहुंचाया है।
नारद जी ने राजन को सांत्वना दी और उन्हें बताया की ध्रुव एक दिन उनका यश बढ़ाएगा वो उसकी चिंता न करे।
बालक ध्रुव की कथा :
ध्रुव ने यमुना में स्नान करके श्री नारायण की पूजा आरंभ कर दी ,
ध्रुव ने 3,3 रात्रि का अंतराल पर शरीर निर्वाह के लिए केवल कैथ और बेर के फल खाकर श्री हरि की उपासना करते हुए 1 माह व्यतीत किया।
दूसरे महीने में उन्होंने 6 – 6 दिन के अंतराल पर सूखे घास और पत्ते खाकर भगवान का भजन किया।
तीसरा महीना ध्रुव ने 9, 9 दिन के अंतराल पर केवल जल पीकर समाधि योग में श्री हरि की आराधना करते हुए बताया।
चौथा महीने में उन्होंने श्वास को जीतकर 12, 12 दिन के अंतराल पर केवल वायु को पीकर ध्यान योग द्वारा प्रभु की आराधना की।
पांचवे महीने में उन्होंने श्वास को जीतकर और एक पैर पर खड़े होकर संपूर्ण चित श्रीहरि में लगा दिया।
बालक ध्रुव का तेज इतना बढ़ गया कि उनके श्वास रोकने से सभी जीवो का श्वास रुक गया।
देवता यह देखकर चिंतित हो गए और उन्होंने श्री हरि की शरण ली और कोई समाधान की प्रार्थना की।
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श्री हरी के दर्शन :
बालक ध्रुव जिस मूर्ति का रूप अपने मन में रखकर ध्यान कर रहे थे वह बिजली की चमक की तरह उसके मन से गायब हो गई।
घबराकर जब ध्रुव ने आंख खुली तो देखा कि भगवान उसी रूप में उसकी नजरों के सामने खड़े थे
श्रीहरि का दर्शन पाकर बालक ध्रुव ने पृथ्वी पर लेट कर उन्हें प्रणाम किया और प्रेम भाव से एकटक देखते ही रहे।
वे प्रभु के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए
वे प्रभु की स्तुति करना चाहते थे परंतु किस प्रकार करें यह बालक ध्रुव नहीं जानते थे।
भगवान उसकी मन की बात जान गए, भगवान ने अपने दिव्य शंख को ध्रुव के गाल को छुआ दिया
उसके बाद ध्रुव जी को वेदवानी प्राप्त हो गई।
उन्होंने हाथ जोड़कर तरह तरह से भगवान का गुणगान किया और उनकी महिमा का वर्णन किया
ध्रुव जी उनकी प्रशंसा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे।
बालक ध्रुव की कथा :
इसके बाद श्री भगवान ने कहा उत्तम व्रत का पालन करने वाले राजकुमार मैं तेरे मन का संकल्प जानता हूं
जब भी उस पद का प्राप्त होना बहुत कठिन है तो भी मैं तुझे मैं देता हूं तेरा कल्याण हो।
श्री भगवान ने ध्रुव को ऐसा लोक दिया और कहा कि –
वह अविनाशी लोक हैं जो कल्प के अंत में भी अन्य लोको का नाश होने पर स्थिर रहता है।
वही लोक बाद में ध्रुव के नाम से जाना गया जिसे हम ध्रुव तारा कहते है।
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