समाजवाद क्या होता है । Samajwad Kya hota hai :
Samajwad Kya hota hai मार्क्सवाद (समाजवाद) कैसे शुरू हुआ।
समाजवाद का जनक कार्ल मार्क्स को माना जाता है , कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी में हुआ था
कार्ल मार्कस 19 वी सदी का एक (समाजवाद) विचारक था।,
मार्क्स की दलील थी कि गरीब और अमीरों के बीच खाईनुमा असमानताओ का कारण है कि महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर जैसे जंगल, जल, जमीन आदि पर निजि (प्राइवेट) स्वामित्व है।
निजी स्वामित्व से लोग ताकतवर बनते है समाज के ऊपर उनकी पकड और मजबूत हो जाती है। वो समाज मे, राजनिति मे, छाए रहते है फिर अपने हिसाब से कानून बनाते है और सरकारों को प्रभावित करते है।
वो लोग ऐसा करके अपनी पीढीयों को धन, दौलत का ढेर देकर जाते है जिसके दम पर उनकी पीढीया भी ऐसा ही करती है।
सीधे तौर पर कहा जाए – एक तो राजशाही काल मे ही ताकतवर लोगो ने संपदाओं के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया और उसे अब तक कायम रखे है,
दूसरा निजी स्वामीत्व ऐसी चीजो को और बढ़ावा देता है जिससे असमानता फैलती है ऐसा समाजवादी
सोच के आधार पर कहा जा सकता है।
समाजवाद का मानना है कि आर्थिक असमानता सामाजिक और राजनीतिक असमानता को बाढ़ावा देती है।
Samajwad Kya hota hai :
इसलिए (मार्क्सवाद) समाजवाद का कहना है कि आवश्यक और महत्वपूर्ण संसाधनों पर जनता का नियंत्रण कायम और सुनिश्चित करने की आवश्यकता है
लोकतन्त्र में तो सरकार का नियंत्रण ही जनता का नियंत्रण कहा जाता है।
समाजवाद का मानना है कि हर प्रमुख और महत्वपूर्ण कंपनियों को सरकार के द्वारा संचालित करना चाहिए और
निजी व्यापार कम से कम होना चाहिए।
सरकार को स्कूल , अस्पताल, सड़क, और सभी बुनियादी सुविधाओं को अच्छे से तैयार करके लोगो को अच्छी सुविधा देनी चाहिए
और सभी के लिए समान सुविधाएं होनी चाहिए।
गरीब से गरीब भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सभी बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठा सकता है
लेकिन अगर निजी स्वामित्व को बढ़ावा दिया गया तो गरीब और आम लोग सभी अच्छी सुविधाओ से वंचित रह जायेंगे।
समाजवाद का कहना है कि जहा भी निजी स्वामित्व (पूंजीवाद) बढ़ता है –
वहा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, निजी हो जाते है और गरीब और आम लोग को इनमे इलाज कराना महंगा साबित होता है क्योंकि वो व्यापार के तहत अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहते है
अगर सरकार सारी बुनियादी सुविधाओं को संचालित करती है तो वो मुफ्त में या बहुत कम पैसे में लोगो को सुविधा दे सकती है ,
जिससे गरीब , मजदूर, और निम्न मध्यम वर्ग भी इन सुविधाओ का लाभ उठा सकता है।
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भारत में समाजवाद का इतिहास :
आजादी के बाद पहले भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी समाजवाद के पक्षधर थे।
उनके कार्यकाल से ही भारत सरकार ने कई क्षेत्रों में सरकारी कंपनियों की स्थापना की।
आजादी के बाद भारत के राजनेताओं को एक डर भी था
“भारत को लगता था की एक विदेशी कंपनी ( ईस्ट इंडिया कंपनी ) इतनी ताकतवर हो गई थी की उसने भारत को गुलाम बना लिया था”
भारत ऐसा कोई खतरा अपनी आजादी की कीमत पर मोल नही लेना चाहता था ,
इसलिए भारत में सभी तरह की जो कंपनिया थी वो सरकारी थी और भारत पूरी तरह एक समाजवादी विचारधारा वाला देश था।
लेकिन 1990 – 91 में आई आर्थिक परेशानियों को देख कर भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन किया
और अपनी अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था से मिश्रित अर्थव्यवस्था में बदल लिया।
1991 – 92 में किए आर्थिक सुधारों को हम L.P.G यानी Liberalization, Privatization, Globalization के नाम से भी जानते है।
L.P.G सुधारों के तहत भारत में निजी व्यापार को अनुमति दी गई,
भारतीय बाजार को दुनिया के लिए सीमित मात्रा में खोला गया, और निजी व्यापार के लिए नियम कानूनों को आसान बनाया गया।
आर्थिक सुधारों की इस प्रक्रिया को भारत अब भी जारी रखे हुए है
भारत तेजी से अब मिश्रित अर्थव्यवस्था से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने का कारण ही है की भारत की सरकार अब धीरे धीरे अपनी सभी कंपनियों को निजी लोगो और संस्थाओं को बेच रही है।
कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत आने वाले कुछ सालो में एक घोर पूंजीवादी देश बन जाएगा।
विश्व में समाजवादी विचारधारा वाले प्रमुख देश – चीन , रूस , उत्तर कोरिया है.
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