परा तथा अपरा शक्तिपरा तथा अपरा शक्ति क्या है ? What is pra and apra power of lord Krishna ?

परा तथा अपरा शक्ति क्या है ?

परा तथा अपरा शक्ति , जय श्री कृष्णा दोस्तों आज हम इस पोस्ट पर जानेंगे कि भगवान श्री कृष्ण की परा तथा अपरा शक्ति क्या है।

अध्याय -7 भगवद्ज्ञान, श्लोक 4, 5 मैं श्री कृष्ण ने अपनी अपरा तथा पराशक्ति के बारे में अर्जुन को बताया है।

भगवान की अपरा शक्ति :

भूमिरापो नलो वायु: खं मनों बुद्घिरेव च।
अहंकार इतिय में भिन्ना प्रकृति रस्तधा।।

अर्थ – पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि तथा अहंकार यह आठ प्रकार से विभक्त मेरी भिन्ना ( अपरा ) प्रकृति या है।

तात्पर्य भगवान श्री कृष्ण ने यहां अपनी प्राकृतिक शक्तियों का वर्णन किया है,

ईश्वरी विज्ञान यहां भगवान की स्वभाविक स्थिति तथा उनकी विविध शक्तियों का विश्लेषण करता है।

समझने के लिए हम सात्वत तंत्र में मिले उल्लेख का सहारा लेते है :

सात्वत तंत्र मैं भगवान कृष्ण का स्वांश तीन विष्णु का रूप धारण करता है

प्रथम  Mahavishnu  है जो संपूर्ण भौतिक शक्ति महतत्व को उत्पन्न करते हैं

द्वितीय  Garbhodkshayi  जो समस्त ब्रह्मांडो में प्रविष्ट होकर उनमें विविधता उत्पन्न करते हैं

तृतीय  Chirodkshayi  विष्णु है जो समस्त ब्रह्माण्डो में परमात्मा स्वरूप में फैले हुए है और परमात्मा कहलाते है
वे प्रत्येक परमाणु तक के भीतर उपस्थित है।

भगवान की अपरा शक्ति :

भौतिक जगत भगवान की शक्तियों में से एक का क्षणिक प्राकट्य है

इस जगत की समस्त क्रियाएं इन तीनों विष्णु अंशो द्वारा निर्देशित है।

भौतिक शक्ति आठ प्रधानों के रूप में वयक्त होती है,

इनमे से पांच – प्रथ्वी, जल, अग्नि , भूमि , आकाश ये स्थूल और विराट शक्ति कहलाती है।

(जिनमे 5 इंद्रियविष्य है – शब्द , स्पर्श, रस, रूप, गंध)

लेकिन 3 अन्य विषय मन, बुद्धि, अहंकार इन तीनों को हमारा भौतिक (फिजिक्स) विज्ञान उपेक्षित रखता है।

ये भी पढ़े – क्या गीता में ये लिखा है कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो (कर्मयोग) kya geeta me likha h karam kro fal ki icha mat kro

भगवान श्री कृष्ण ही आदि कारण है :

परा तथा अपरा शक्ति

सामान्य रूप से जो पुरुष श्री कृष्ण तत्व को नहीं जानता है उसे लगता है कि यह संसार जीवो के भोग के लिए है

और सारे जीव पुरुष है यानी ( भौतिक शक्ति के कारण, नियंत्रक तथा भोक्ता है।)

भगवद्गीता के अनुसार यह निष्कर्ष झूठा है।

प्रस्तुत श्लोक में श्री कृष्ण को इस जगत का आदि कारण (सभी का कारण) माना गया है।

इसलिए हमे ये जान लेना चाहिए की श्री कृष्ण ही समस्त कारणों के कारण है।

भगवान की परा शक्ति :

अपरेय मित स्त्वन्या प्रकृति विद्धी में पराम्।
जीव भूता महा बाहों यायेद धार्यते जगत।।

अर्थ – हे महाबाहु अर्जुन ! इसके अतरिक्त मेरी एक अन्य परा शक्ति भी है,

जो उन जीवो से युक्त है जो इस भौतिक शक्ति के साधनों का विदोहन कर रहे है।

तात्पर्य :
इस श्लोक का तात्पर्य है की जीव परमेश्वर की परा शक्ति है और भगवान कि परा शक्ति से उत्पन्न जीव भगवान की अपरा शक्ति को विदोहन कर रहे है।

यहां पर जीव के जीवन की बात हो रही है यानी आत्मा की आत्मा के बिना कोई जीव जिंदा नहीं रह सकता।

आसान शब्दों में कहा जाए तो जीव के शरीर का साथ लेकर आत्मा (परा शक्ति), अपरा शक्ति का इस्तेमाल कर रही है।

और हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि शक्ति का नियंत्रक हमेशा शक्तिमान करता है

अतः जीव और प्रकृति हमेशा भगवान द्वारा नियत्रित होते है यानी श्री कृष्ण के द्वारा नियत्रित होते है।

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यदि आप पूरा विस्तार से जानना चाहते है तो एक बार अवश्य भगवद्गीता को पढ़िए।

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