एकता में बल कहानी | एकता में शक्ति की सच्ची कहानीएकता में बल की कहानी | एकता में शक्ति की सच्ची कहानी

एकता में बल की कहानी :

एकता में बल की कहानी – हम लोग बचपन से ही सुनते आए है की एकता में शक्ति होती है।

हमने ऐसी कई कहानियां पढ़ी हैं जो हमे एकता में शक्ति की कहानी बताती है ।

आज हम ऐसी ही एक ऐसी सच्ची कहानी के बारे में पढ़ेंगे

यह कहानी है मध्य प्रदेश के मछुआरों की जो की तवा नदी के आस पास रहते थे,

तवा नदी छिंदवाड़ा जिले की महादेव पहाड़ियों से निकलती है

सरकार ने आजादी के कुछ समय बाद तवा नदी के आस पास के इलाके को जानवरों के लिए जंगल घोषित कर दिया,

और वहा पर एक बांध बनाने का निर्णय लिया।

बांध का निर्माण कार्य 1958 में शुरू हुआ 1978 तक सरकार ने बांध बना कर तैयार कर दिया।

जंगल में रहने वाले लोगो को वहा से विस्थापित किया गया लेकिन उनके पास अब कृषि के लिए भूमि नही थी।

इनमे से कुछ लोगो ने बांध के आसपास रह कर खेती करना और मछली पकड़ने का व्यवसाय शुरू कर दिया ,

इतना करने के बाद भी वो लोग बस थोड़ा बहुत ही कमा पाते थे और उसी में गुजारा करते थे।

1994 में सरकार ने तवा बांध से मछली पकड़ने का काम निजी ठेकेदारों को सौंप दिया,

निजी ठेकेदारों ने स्थानीय लोगो को काम से अलग कर दिया और बाहरी क्षेत्र से सस्ते श्रमिक को काम करने के लिए ले आए।

स्थानीय गांव वासियों ने जब काम से हटने से मना किया तो ठेकेदारों ने बाहर से गुंडे बुलाकर गांव वालो को धमकियां देना शुरू कर दिया।

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एकता में बल :

गांव वालो ने एकजुट होकर तय किया की

अब उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने और संगठन बनाकर अपनी आवाज उठाने का वक्त आ गया है।

इस तरह सभी गांव वालो ने मिलकर “तवा मत्स्य संघ” नाम के एक संगठन को बनाया,

नए गठित “तवा मत्स्य संघ” ने सरकार से मांग की कि लोगो के जीवन निर्वाह के लिए बांध में मछली पकड़ने के काम को जारी रखने की अनुमति दी जाए।
इस मांग के साथ “तवा मत्स्य संघ” के लोगो के द्वारा चक्का जाम शुरू किया गया,

उनके प्रतिरोध को देखकर सरकार ने पूरे मामले की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की ,

समिति ने गांव वालो के जीवन यापन के लिए उनको मछली पकड़ने का अधिकार देने की अनुशंसा की।

1996 में मध्य प्रदेश सरकार ने तय किया की तवा बांध के जलाशय से मछली पकड़ने का अधिकार यहां के विस्थापितों को ही दिया जाएगा,

दो महीने बाद सरकार ने “तवा मत्स्य संघ” को बांध में मछली पकड़ने के लिए 5 वर्ष का पट्टा देना स्वीकार कर लिया।

“तवा मत्स्य संघ” के 33 गावों के लोगो के लिए 2 जनवरी 1997 को सही अर्थों में नए साल की शुरुवात हुई।

“तवा मत्स्य संघ” के साथ जुड़कर मछुआरों ने लगातार अपनी आय में इजाफा दर्ज किया ।

यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि सभी गावों के लोग एक साथ संघटित हो गए

उन सभी की “एकता” का ही परिणाम था की सरकार को उनकी मांगों पर ध्यान देना पड़ा।

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तवा मत्स्य संघ :

सोचिए क्या होता अगर “तवा मत्स्य संघ” नही बना होता ?

शायद वहां के लोगो को रोजगार मिलता ही नही और उनका जीवन स्तर और भी नीचे चला जाता।

इस कहानी से हमे एक बात यह भी सीखने को मिलती है की जब तक आप “एकता” के साथ अपने हक के लिए लड़ाई नही लड़ते है

तब तक कोई भी आपके नुकसान की परवाह नही करता है।

लोकतंत्र में चुनी गई सरकार भी आपकी आवाज उठाने पर ही आपकी समस्याओं पर ध्यान देती है

सोचकर देखिए क्या होता अगर 33 गावों के लोगो ने एक साथ “तवा मत्स्य संघ” को नही बनाया होता और अकेले अकेले विरोध किया होता ?

क्या वो लोग सरकार तक अपनी मांग को पहुंचा पाते ?

सोचिए क्या सरकार एक गांव के निवासियों की मांगों के लिए समिति गठित करती ?

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कहानी से सीख :

ये कहानी हमे सिख देती है की हमे किसी भी मुसीबत का सामना एक होकर करना चाहिए,

“एकता” में बहुत ज्यादा शक्ति होती है।

हमारे दैनिक जीवन में और हमारे आस पास कई सारी ऐसी समस्याएं होती है जिनको हम सुलझाना चाहते है,

लेकिन अकेले हम कुछ नही कर सकते यही सोचकर हम उस समस्या को देखते रहते है।

अगर हम ऐसी समस्याओं को लेकर लोगो को जागरूक करे और एकता के साथ उन समस्याओं का समाधान निकलने का प्रयास करें तो प्रयास जरूर निकलता है।

ये थी “एकता में शक्ति” की एक अद्भुत कहानी।

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