बंग भंग आंदोलन :
बंग भंग आंदोलन ( बंगाल विभाजन विरोधी ) आंदोलन 7 अगस्त 1905 को आरंभ हुआ
इसके प्रमुख नेता सुरेंद्रनाथ बनर्जी और कृष्ण कुमार मिश्र जैसे नरमपंथी नेता थे।
इस आंदोलन के दौरान नरमपंथी और उग्र राष्ट्रवादीयों दोनों ने एक दूसरे को सहयोग किया।
विभाजन को 16 अक्टूबर 1905 को लागू किया गया आंदोलन के नेताओं ने इस दिन को पूरे बंगाल में शोक दिवस के रुप में मनाया।
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बंग भंग आंदोलन क्यों किया गया :
इस आंदोलन का मुख्य कारण बंगाल का विभाजन था जो भारतीयों की इच्छा के विरुद्ध था।
राष्ट्र वादियों ने बंगाल के विभाजन को एक प्रशासकीय उपाय ही नहीं बल्कि राष्ट्रवाद के लिए एक चुनौती समझा।
उन्होंने इसे बंगाल को क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर बांटने का प्रयास माना।
राष्ट्रवादियों ने माना कि इससे बंगाली भाषा और संस्कृति को नुकसान होगा यह विभाजन राष्ट्रवाद को भी कमजोर है और नष्ट कर देगा।
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बंग भंग आंदोलन का महत्व :
इस आंदोलन ने राष्ट्रीय एकता को जागृत किया इस आंदोलन के दौरान कोलकाता की सड़के “वंदे मातरम” की आवाज से गूंज उठी
और रातों-रात यह गीत बंगाल का राष्ट्रीय गान बन गया
इसने हिंदू मुस्लिम एकता का परिचय दिया
बंगालियों और बंगाल के दो टुकड़ों की अटूट एकता के प्रतीक के रूप में हिंदू मुसलमानों ने एक दूसरे की कलाइयों पर राखी बांधी।
ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय और अनेक जगह पर विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई।
आंदोलन की एक महत्वपूर्ण बात इसमें स्त्रियों की सक्रिय भागीदारी थी ,
शहरी मध्यवर्ग की सदियों से घरों में कैद महिलाएं जुलूस और धरनो में शामिल हुई इसमें छात्रों स्त्रियों मुसलमानों सभी ने भाग लिया।
इस आंदोलन के दौरान रविन्द्र नाथ टैगोर ने अपना प्रसिद्ध गीत “आमार सोनार बांग्ला” लिखा।
बंग भंग आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को बंगाल से बाहर देश के दूसरे भागों तक पहुंचाने में प्रमुख भूमिका-
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की रही।
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बंग भंग आंदोलन कब और क्यों समाप्त हुआ :
इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार हर राजनीतिक एवं अन्य प्रयास किया,
खासकर पूर्वी बंगाल की सरकार ने राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने के लिए हर संभव कोशिश की
पूरी बंगाल में सड़कों पर वंदे मातरम का नारा लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
स्वदेशी कार्यकर्ताओं पर मुकदमे चलाए गए उन्हें शारीरिक दंड दिए गए
जब उग्र राष्ट्रवादियों ने मोर्चा संभाला तो उन्होंने विदेशी सामान के बहिष्कार के अलावा निष्क्रिय प्रतिरोध का आह्वान भी किया।
राष्ट्रवादी आंदोलन चलाने के लिए आवश्यक कुशल नेतृत्व और संगठन नहीं दे सके ,
वे देश की वास्तविक जनता और किसानों तक पहुंचने में भी असफल रहे।
महान नेता तिलक की गिरफ्तारी और विपिनचंद्र पाल व अरविंद घोष द्वारा सक्रिय राजनीति से सन्यास ने आंदोलन को बहुत धीमा कर दिया।
1908 के अंत तक सरकार इस आंदोलन को दबाने में सफल रही।
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