पानीपत का प्रथम युद्ध | पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था | First Battle of Panipatपानीपत का प्रथम युद्ध | पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था | First Battle of Panipat

पानीपत का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ था

पानीपत का प्रथम युद्ध इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच 20 अप्रैल 1526 ईसवी में हुआ था

इस युद्ध में बाबर की विजय हुई इब्राहिम लोदी मारा गया और अफगान सेना नष्ट हो गई,

इस निर्णायक विजय के पश्चात बाबर ने दिल्ली में अपने नाम का खुतबा पढ़वाया।
बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखा है – उसने केवल 12000 सैनिकों की सहायता से इब्राहिम लोदी को परास्त कर दिया था

पानीपत युद्ध के क्या कारण थे

बाबर बहुत ही महत्वकांक्षी था बाबर में तुर्क और मंगोलों की शक्ति और फारस वालों का नेतृत्व और साहस का मेल था।
Babar दिल्ली पर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और इब्राहिम लोदी उसके इस रास्ते में बाधा बनकर खड़ा था।
बाबर ने एक बार खुद कहा था –

“काबुल की विजय 1504 से लेकर पानीपत में अपनी जीत तक मैंने हिंदुस्तान को जीतने के बारे में सोचना कभी नहीं छोड़ा”।
भारत एक संपन्न देश था बाबर भारत के आर्थिक उन्नति से प्रभाविता था

भारत के पंजाब पर हमला करने से पहले बाबर का शासन बंदखसा, कंधार और काबुल पर था।
काबुल पर कब्जा करने के बाद बाबर को वहां से मामूली आय होती थी

भारत की बेपनाह दौलत और अपने बेगो को एक अच्छी जिंदगी देने की उसकी चाहत ने उसे भारत की और आकर्षित किया।
भारत के कुछ राजाओं ने बाबर को निमंत्रण भेजा था कि वह दिल्ली पर आक्रमण करें

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पानीपत का प्रथम युद्ध

बाबर ने 12000 लोगों के साथ सिंधु नदी को पार किया था

लेकिन भारत में स्थित उसकी सेना के कारण और पंजाब में बाबर से हाथ मिलाने वाले हिंदुस्तानी अमीरों और सैनिकों की बड़ी संख्या के कारण उसकी कतार बढ़ गई।

इब्राहिम लोदी के पास 100000 सैनिक और 1000 हाथी थे,

भारतीय सेनाओं में आमतौर पर नौकर चाकर के बड़े-बड़े झंडू होते थे इसलिए लड़ने वाली सेना की संख्या कम रही होगी

लेकिन फिर भी बाबर की सेना से इब्राहिम लोदी की सेना की संख्या बहुत ज्यादा थी।

पानीपत का प्रथम युद्ध

बाबर ने युद्ध में रणनीति के तौर पर उस्मानी तरीका अपनाया –

उसने गाड़ियों की एक बड़ी संख्या को आपस में बांध दिया और वह एक प्रति रक्षक दीवार का काम करने लगी,

दो गाड़ियों के बीच जो जगह खाली थी उन पर सैनिक अपनी बंदूक दिखाकर गोली चला सकते थे।
बाबर ने उस्ताद अली और मुस्तफा नामक दो उस्मानी तोपचियों की सेवा भी ली।

घोड़े पर सवार बाबर की सेना ने दोनों साइड से जाकर और पीछे की तरफ से इब्राहिम लोदी की सेना पर आक्रमण किया।
इब्राहिम लोदी अंत तक लड़ा इस लड़ाई में उसके अलावा उसके 15,000 से अधिक सैनिक मारे गए।
बाबर के बेहतर तोपखाने और तीरंदाजों ने बाबर को युद्ध जीतने में मदद की।

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पानीपत के युद्ध के परिणाम

पानीपत की लड़ाई को भारतीय इतिहास के निर्णायक लड़ाई में से एक माना जाता है इस लड़ाई में लोधी सत्ता की कमर तोड़ दी

तथा दिल्ली और आगरा तक का पूरा क्षेत्र बाबर के अधीन कर दिया।
आगरा में इब्राहिम लोदी के जमा किए गए खजाने ने बाबर की आर्थिक कठिनाइयों को कम किया।

बाबर ने भारत में ठहरने का फैसला किया,

उसके अनेक अमीर जो काबुल वापिस जाना चाहते थे उन्हें जाने की इजाजत दे दी।
बाबर के भारत में ठहरने के फैसले के साथ ही उत्तर भारत में वर्चस्व के संघर्ष का एक नया चरण आरंभ हुआ।
मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।

पानीपत युद्ध में बाबर की जीत के कारण

भारत में शक्तिशाली केंद्रीय शक्ति का अभाव था।
बाबर की सेना संगठित, सुप्रशिक्षित एवं बेहतर अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित थी।
Babar योग्य अनुभवी सेनापति था बाबर के पास तोपखाना था

जिसका सामना करने की शक्ति इब्राहिम लोदी की सेना में नहीं थी

बाबर की युद्ध रणनीति काफी अच्छी थी।

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