गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलनगांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन। असहयोग आंदोलन । सविनय अवज्ञा आंदोलन। भारत छोड़ो आंदोलन।

गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन :

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गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन – इस पोस्ट में हम हमारे देश के राष्ट्रपिता और देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलनों के बारे में पढ़ेंगे।

हम जानेंगे कि वो आंदोलन कोन कोन से थे, वो कब और क्यों किए गए उनका महत्व क्या रहा।

इस पोस्ट में आप जानेंगे :

असहयोग आंदोलन ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन।
भारत छोड़ो आंदोलन।

असहयोग आंदोलन : ( गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन )

यह आंदोलन औपचारिक रूप से 31 अगस्त 1920 को शुरू हुआ था।

लेकिन उससे पहले ही सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का दौर जारी था।

जिसे असहयोग आंदोलन के रूप में गांधी जी ने नेतृत्व प्रदान किया।

असहयोग आंदोलन को शुरू होने के मुख्य कारण थे :

प्रथम विश्व युद्ध के बाद के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे और आम जनता को भारी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।

रॉलेट एक्ट –

मार्च 1919 में ब्रिटिश भारत सरकार ने केंद्रीय विधान परिषद के एक – एक भारतीय सदस्य द्वारा विरोध के बावजूद रॉलेट एक्ट बनाया,

इस कानून में सरकार को अधिकार प्राप्त था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और बिना दंड दिए जेल में बंद कर सके।

कैदी को अदालत में प्रत्यक्ष उपस्थिति करने का जो कानून ब्रिटेन में नागरिक स्वाधीनता की बुनियाद था

उसे भी निलंबित करने का अधिकार सरकार ने रॉलेट कानून से प्राप्त कर लिया।

इस एक्ट के विरुद्ध मार्च / अप्रैल 1919 में सत्याग्रह किया गया जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी जी ने किया।

मांटेंग्यू – चेम्सफोर्ड –

सुधार ब्रिटिश सरकार के भारत मंत्री एडमिन माटेंग्यू तथा वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने 1918 में संविधान सुधारों की एक योजना सामने रखी

जिनके आधार पर 1919 का भारत सरकार कानून बनाया गया यह कानून दोहरी शासन प्रणाली के लिए लाया गया था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड –

रॉलेट एक्ट के विरुद्ध गांधी जी के आह्वाहन पर –

पंजाब के अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को एक निहत्थे मगर भारी भीड़ अपने लोकप्रिय नेताओं डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए जलियांवाला बाग में जमा हो गई,

अमृतसर के फौजी कमांडर जनरल डायर ने बाग के दरवाजे पर फौजी दस्ता खड़ा करके भीड़ पर गोलियां चलवा दी जिसमें हजारों लोग मारे गए।

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम :

गांधी जी ने सत्याग्रह करने का एक नया तरीका लोगो को सिखाया जिसमें कानून का पालन न करने गिरफ्तारी देने और जेल जाना शामिल था।

इस आंदोलन से प्रभावित होकर और मुख्य लोगों ने अपनी उपाधियों और मानद अधिकारों की वापसी की।

मनोनीत कार्यालयों और स्थानीय निकायों से इस्तीफा दिया।

लोगों ने सरकारी दरबार में जाने से इनकार किया और वकीलों द्वारा न्यायालय का बहिष्कार किया गया।

आम लोगों द्वारा फौज में और सरकारी सेवा में जाने से इनकार किया गया

विदेशी कपड़ों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया।

असहयोग आंदोलन का महत्व : ( गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन )

यह देश का पहला राष्ट्रीय आंदोलन था जिसने समाज के सभी वर्गों –

जैसे किसानों, शिक्षकों, छात्रों , महिलाओं और व्यापारियों को साथ लाने का काम किया,

इसे वास्तविक जनाधार प्राप्त हुआ, क्योंकि यह तेजी से देश के सभी हिस्सों में फैल गया

इस आंदोलन में लोगों में राष्ट्रीय एकता का भाव जगाया एवं देश की आजादी के लिए त्याग करने की भावना को जागृत किया।

असहयोग आंदोलन कब और क्यों वापस लिया गया :

5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर के चौरी – चौरा नामक स्थान पर एक जुलूस निकाला जा रहा था,

इसका नेतृत्व कर रहे लोगों पर पुलिस के जवानों ने लाठीचार्ज कर दिया जिससे भीड़ आक्रोशित हो गई तथा

उसने पुलिस बल पर हमला कर दिया

पुलिस के जवान अपनी जान बचाने को थाने में छिप गए प्रदर्शनकारियों ने थाने को घेर कर जला दिया

जिसमें एक थानेदार और 22 पुलिस के जवान जलकर मर गए ।

इस हिंसक घटना से दुखी होकर गांधी जी ने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक बुलाई

जिसमें चौरी चौरा कांड के कारण सामूहिक सत्याग्रह वह असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का प्रस्ताव पारित किया गया ।

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सविनय अवज्ञा आंदोलन : ( गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन )

सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को प्रसिद्ध दांडी मार्च के साथ आरंभ किया था।

इस दिन 78 चुने हुए अनुयायियों को साथ लेकर गांधी जी साबरमती आश्रम से चले और लगभग 375 किलोमीटर दूर-

गुजरात के समुंद्र तट पर स्थित दांडी गांव पहुंचे।

गांधी जी 6 अप्रैल 1930 को दांडी गांव पहुंचे और समुद्र तट से मुट्ठी भर नमक उठाकर नमक कानून को तोड़ा।

सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों किया गया ? :

साइमन कमीशन की नियुक्ति –

नवंबर 1927 में ब्रिटिश सरकार ने इंडियन स्टेट्यूटरी कमीशन का गठन किया जिसे आमतौर पर इसके अध्यक्ष साइमन के नाम पर साइमन कमीशन कहा जाता है

इसका उद्देश्य आगे संवैधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था

इस कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे सभी वर्गों के भारतीयों ने इस घोषणा का भारी विरोध किया।

उन्हें सबसे अधिक क्रोध इस बात पर था कि कमीशन में एक भी भारतीय को नहीं रखा गया था।

30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की लाठियो से घायल होकर पंजाब के महान नेता लाला लाजपत राय शहीद हो गए।

साइमन कमीशन के विरोध के दौरान ही दिसंबर 1928 में गांधीजी सक्रिय राजनीति में वापस लौट आए

और कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में शामिल हुए।

पूर्ण स्वराज्य – कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित एक प्रस्ताव ने “पूर्ण स्वराज्य” को कांग्रेस का उद्देश्य घोषित किया

26 जनवरी 1930 को पहला स्वाधीनता दिवस घोषित किया गया।

नमक कानून – ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर कर लगाया गया और समुद्र तट के गांव में नमक बनाने पर रोक लगा दी गई।

इन सब कारणों से प्रभावित होकर गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को आरंभ किया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व : ( गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन )

गांधी जी द्वारा चलाए गया यह आंदोलन जल्दी है देश में फैल गया

“पूरे देश मे नमक कानून तोड़े गए , और पूर्वी भारत में जनता ने चौकीदारी कर अदा करने से इंकार कर दिया।”
देश में हर जगह जनता हड़ताल , प्रदर्शन , करने लगी और विदेशी कपड़ों के बहिष्कार में भाग लेने लगी।

लाखो भारतीयों ने सत्याग्रह किया और देश के कई भागों में किसानों ने जमीन को मालगुजारी और लगान देने से इंकार कर दिया।

इस आंदोलन की प्रमुख विशषता यह रही कि इसमें महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था।

हजारों स्त्रिया घरों के अंदर से बाहर निकली और सत्याग्रह में भाग लिया।

विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना देने में उनकी सक्रिय भूमिका रही। जुलूसों में वे पुरुषों के साथ चलती थी।

आंदोलन का महत्व इससे पता चलता है कि – गांधी जी तथा दूसरे कांग्रेसी नेताओं समेत 1 लाख से अधिक सत्याग्रही गिरफ्तार किए गए थे और कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन कब और क्यों वापिस लिया गया :

1930 में ब्रिटिश सरकार ने लंदन में भारतीय नेताओं और सरकारी प्रवक्ताओं का पहला गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया,

इसका उद्देश्य साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करना था लेकिन कांग्रेस ने सम्मेलन का बहिष्कार किया कांग्रेस के बिना सम्मेलन का कोई महत्व नहीं था।

फिर ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस से किसी सहमति पर पहुंचने के लिए बातचीत शुरू की –

अंत में लॉर्ड इरविन और गांधीजी के बीच मार्च 1931 में एक समझौता हुआ ,

सरकार अहिंसक रहने वाले राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर तैयार हो गई ,

उपयोग के लिए नमक बनाने का अधिकार तथा विदेशी वस्तुओं तथा शराब की दुकानों पर धरना देने का अधिकार मान लिया गए

तब कांग्रेस ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन रोक लिया और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार हो गई।

दूसरे गोलमेज सम्मेलन में बातचीत विफल होने पर गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को दोबारा शुरू किया –

लेकिन यह आंदोलन धीरे धीरे बिखर गया।

कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से मई 1934 में इसे वापिस ले लिया।

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भारत छोड़ो आंदोलन : ( गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन )

8 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मीटिंग हुई ,

जिसमें प्रसिद्ध ” भारत छोड़ो ” प्रस्ताव स्वीकार किया गया।

इस उद्देश्य को पाने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में एक अहिंसक जनसंघर्ष चलाने का फैसला किया गया।

इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए गांधी जी ने भारत की जनता को “करो या मरो” का मंत्र दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों किया गया :

ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को मित्र राष्ट्र की तरफ से शामिल किया था – कांग्रेस जिसके खिलाफ थी,

महात्मा गांधी जी का कहना था कि वह नाजीवाद और अंग्रेजों के दोहरे शासन में कोई फर्क नहीं समझते और भारत की जनता का विशाल हिस्सा इसमें शामिल नहीं होगी।

ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों का सहयोग पाने के लिए एक कैबिनेट मंत्री स्टैनफोर्ड क्लिप्स के नेतृत्व में मार्च 1942 में एक मिशन भारत भेजा

उनके तथा कांग्रेसी नेताओं की लंबी बातचीत बावजूद यह मिशन में विफल रहा।

गांधी जी को या विश्वास हो गया था कि अंग्रेज अब भारत की सुरक्षा करने में असमर्थ है

जैसे-जैसे जापानी फौजी भारत की ओर बढ़ती गई तथा जापानी विजय का भय जनता-

और नेताओं को त्रस्त करने लगा गांधीजी उतने ही अधिक जुझारू होते गए।

युद्ध के कारण देश की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही थी यह भी एक मुख्य कारण था।

आंदोलन के कार्यक्रम : ( गांधी जी के तीन प्रमुख आंदोलन )

9 अगस्त को सुबह ही गांधी जी तथा दूसरे कांग्रेसी नेता गिरफ्तार करके अनजानी जगह पर ले जाए गए और कांग्रेस को फिर एक बार गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।

नेता और संगठन विहीन जनता ने जिस ढंग से भी ठीक समझा अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की पूरे देश में कारखानों में स्कूल और कॉलेजों में हड़ताल हुई और कामबंधी हुई।

करो या मरो और अंग्रेज़ भारत छोड़ो का नारा आम जनता की जुबानों पर आ गया।

12 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया गया जिसमे सभाए करने और नमक बनाने तथा कर ना देने पर विशेष बल था।

पुलिस थाना तहसीलों को अहिंसात्मक तरीकों से अकर्मण्य बनाने पर बल दिया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व :

इस आंदोलन ने अपने मूल लक्ष्य भारत से ब्रिटिश शासन की समाप्ति तो तत्कालिक रूप में प्राप्त नहीं की

लेकिन इस आंदोलन में भारत की जनता में एक ऐसी है पूर्व जागृति उत्पन्न कर दी जिसके कारण

“ब्रिटेन के लिए भारत पर भारत की जनता की इच्छा के बिना लंबे समय तक शासन कर सकना संभव नहीं छोड़ा।”

इस आंदोलन ने यह दिखा दिया की पूरा भारत में राष्ट्रवाद कि भावनाए किस गहराई तक जड़े जमा चुकी थी

और जनता संघर्ष और बलिदान करने को तैयार थी।

भारत छोड़ो आंदोलन कब और क्यों समाप्त किया गया :

कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने और कांग्रेस को प्रतिबंध करने के बाद सरकार ने अपनी ओर से 1942 के इस आंदोलन को कुचलने के लिए सब कुछ किया उसके दमन की कोई सीमा नहीं रही प्रेस का पूरी तरह गला घोट दिया गया।

नगरो और कस्बों में सेना तैनात कर दी गई पुलिस और सेना की गोलीबारी में 10000 से अधिक लोग मारे गए।

भीड के समूहों पर मशीन गनों से गोलियां बरसाई गई और बमबारी की गई।

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विद्रोही गावों पर भारी जुर्माना लगाया गया गांव वालों पर कोड़े बरसाए गए और

पूरी भारतीय जनता पर निर्मम अत्याचार किया गया।

अंतः सरकार 1942 में ही विद्रोह को दबाने में सफल रही।

1942 के विद्रोह के दमन के बाद 1945 में युद्ध की समाप्ति तक देश में राजनीतिक गतिवधियां लगभग ठप रही।

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